अभी तक आप ने पढ़ा कि शिल्पा की शादी तुषार से हो जाती है लेकिन तुषार अपने पहले प्यार का वास्ता देकर शिल्पा को अपनी पत्नी का दर्जा नहीं दे पाता किन्तु दुनिया के नजरों में वो पति पत्नी की तरह रहते हैं तभी शिल्पा की दोस्त उससे मिलने आती है। उसके आगे-
“हाँ… अभी वो खाना खाने आने वाले भी हैं”- शिल्पा ने कहा।
“क्या हैंडसम हैं… तु तकदीर वाली है, जिसे इतना चाहने वाला मिला और एक मेरा देख… अपने व्यापार से ही उसे फुर्सत नहीं मिलती…जब देखो… आज इसकी मीटिंग तो कल उसकी मीटिंग…बस इसी तरह हमारी जिंदगी गुजरती है”-अंजली अपने ही धुन में कहे जा रही थी।
(काश… शिल्पा के दिल की व्यथा समझ पाती…तब उसको पता चलता कि शिल्पा का दुःख उसके दुःख से कई लाख गुणा अधिक है।)
खट…खट…खट…
“लो…वो आ गए”- शिल्पा कहते हुए कमरे से बाहर चली गईं।
“मेरी एक सहेली आई है… हमदोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते थे…प्लीज़,उससे मिल लो”- शिल्पा ने आग्रह करते हुए।
“तुमने तो इसके बारे में पहले मुझे कभी नहीं बताया”- तुषार शिकायती लहजे में।
शिल्पा मन ही मन बड़बड़ाते हुए “तुमने मेरी सुनी ही कब”
“क्या सोचने लगी…”- तुषार ने शिल्पा की आँखों के आगे चुटकी बजाते हुए।
“हू… कुछ नहीं… चलो… कमरे में बैठी है”-शिल्पा ने कहा।
“लो…मिलो अंजली… ये है तुम्हारे जीजाजी…”-शिल्पा तुषार की तरफ इशारा करते हुए।
“हेलो…आप से मिलकर बड़ी खुशी हुई। आपके आने से पहले ही शिल्पा ने आपके बारे में बहुत कुछ बता दिया था बाकी आपसे मिलकर पता चल जाएगा”- अंजली शरारती लहजे में।
“क्या…? “- तुषार घबराते हुए पूछा।
“यही कि आप बहुत ही खुशमिजाज व्यक्ति है…मानना पड़ेगा जीजाजी आपलोगों की शादी के पांच- साढ़े पांच साल बीत गए पर आज भी आपलोगों का प्यार एक जिंदादिली की मिसाल है। क्यों ठीक है न…?”- अंजली ने आँखें मटकाते हुए।
“हाँ…हाँ… क्यों नहीं… आखिर है भी तो…”- तुषार अभी अपना वाक्य पूरा कर भी नहीं पाया था कि अंजली बीच में ही बोल पड़ी-
“एक दूसरे के जीवनसाथी”
इसके साथ ही सभी की एक साथ हँसी गूँज उठी लेकिन उस हसीन वातावरण में कोई ऐसा नहीं था जो बता सकता या समझ सकता कि तुषार और शिल्पा की हँसी कितनी खोखली थी।
“अच्छा… मैं चलती हूँ… बहुत देर हो गई…मुझे अभी मार्केर्ट में भी कुछ काम है…आपलोगों के साथ समय का पता ही नहीं चला”- मुस्कुराते हुए अंजली घर से निकल पड़ी।
“माँ…4:00 बज गए मैं भी जा रहा हूँ”- तुषार ने कहा।
“ठीक है बेटा… बहू… बहू…”
“हाँ माँ”- शिल्पा ने सास के पास आते हुए कहा।
“तुषार गया”
“जी”- शिल्पा ने कहा।
“आ बैठ…”- सास ने अपने पास बैठने का इशारा करते हुए।
“माँ… रामायण लेकर आऊ”- शिल्पा ने
“आज रामायण सुनने के लिए नहीं बुलायी… कुछ और कहने के लिए बुलायी हूँ…”-सास ने प्रश्नात्मक मुद्रा में कहा।
“जी…”- शिल्पा घबराते हुए।
“सुन…तेरी शादी को पूरे साढ़े पांच साल हो गए ,अब जल्दी से घर के आँगन में एक खूबसूरत सा फूल खिला दे”-सास अपनी अभिलाषा को जताते हुए।
“माँ…इतनी जल्दी भी क्या है?…कोई…”- शिल्पा पूरा बोल भी न पाई थी कि सास ने बीच में ही बात काटते हुए कहने लगी-
“हाँ… हाँ… तु तो हमेशा की तरह यही कहने वाली है न कि ‘कोई ज्यादा समय थोड़ी ही बीता है’ अब तो मेरे कान तरस गए दादी सुनने को… पता नहीं इस जीवन में तुषार के बच्चे को देख भी पाऊँगी या नहीं…”- सास ने एक लम्बी ठण्डी सांस भरते हुए।
“माँ…( शिल्पा के ‘माँ ‘शब्द में इतना दर्द था कि वो बता नहीं सकती… कैसे बताती कि उसका बेटा आजतक उसे पत्नी का दर्जा दिया ही नहीं…जब वो इस घर में दुल्हन बनकर आई थी तब उसके भी कई सपनें थे…जो रेत के महलों की तरह ढह गए…वो भी चाहती थी कि उसे भी कोई माँ कह कर बुलाए… परन्तु सास के अरमानों को न चाहते हुए भी वो कुचल रही थी क्योंकि वो खुद एक जिन्दा लाश बन कर रह गई थी )…रात को खाना क्या बनेगा…”- शिल्पा बात को टालते हुए।
आज फिर हमेशा की तरह बात आई- गई हो गई। समय मानो पंख लगाकर उड़ने लगा और इस तरह शिल्पा की शादी के आठ- नौ साल गुजर गए। किन्तु इन नौ सालों में शिल्पा के मन मस्तिष्क में अन्तः द्वन्द होता…कई बार सोचती कि मैं क्यूँ न अपने अधिकार के लिए लड़ूं… क्यों?…क्यों मैं ये अन्याय सहूँ ?…इसमें मेरा कसूर भी क्या था ?…अगर इनके जीवन में कोई और थी तो इसमें मेरी क्या गलती ?…इन्होंने मेरी ज़िंदगी क्यों बर्बाद की ?…इस तरह न जाने कितनी बार शिल्पा टूटती और बिखरती गई… कई बार फूट- फूट कर रोने लगती… रोती नहीं तो करती भी क्या ? अपना दर्द कहती भी तो किससे ? होने को तो उसके अपने सभी थे किन्तु कहने के लिए अपना कोई न था।
मानो शिल्पा अन्तः रूप से टूट चुकी हो। लेकिन बाह्य रूप से आज भी चट्टान की भांति खड़ी थी। जो कब ढह जाये…उसे खुद को नहीं मालूम था। तभी-
“बहू…बहू… शिल्पा”- सास ने आवाज लगाई।
“हाँ माँ…”-शिल्पा ने कहा।
“चल आज मैं तेरे साथ उसी डॉक्टर के पास चलूँगी, जिसका इलाज तुमदोनों वर्षों से करवा रहे हो… आखिर अबतक मेरी बहू की गोद क्यों नहीं हरी हुई? चल…जल्दी चल”-सास ने शिकायती लहजे में कहा।
“चलती हूँ…”- शिल्पा घबराते हुए, सोचने लगी।…
(माँ… माँ, मैं आपको किस डॉक्टर के पास ले चलूँ? मैं क्या बताऊँ और कैसे समझाऊ? आजतक मैंने आपको कभी सच नहीं कहा…यदि सच कहती तो आप सहन नहीं कर पाती,और… और…,नहीं- नहीं मैं ऐसा कभी नहीं कर सकती।माँ को कुछ नहीं होने दूँगी।मैं… मैं… ‘ध..ड़ा..म’।अभी शिल्पा आगे कुछ सोच पाती कि अचानक बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ी।)
“बहू…ब..हू तुम्हें क्या हो गया? कुछ बोलती क्यों नहीं?कही मैं दादी तो नहीं बनने वाली हूँ”-सास कहती हुई फोन पर नम्बर डायल करने लगी।
“हेलो…”- डॉ. अशोक बोल रहा हूँ।(दूसरी तरफ से)
“डॉ. साहब… मैं तुषार की माँ बोल रही हूं, कृपया मिसेज डॉ. अशोक जी को जल्दी घर भेजिए।मेरी बहू की अचानक तबियत बिगड़ गई है”-सास कहती हुई वापस कमरे की तरफ भागी
कुछ समय के बाद डॉ. मिसेज अशोक आ पहुँचीऔर आते ही कहा-
“कहाँ है आपकी बहू”
“कमरे में”-सास कमरे की तरफ इशारा करते हुए।
“इनके कुछ टेस्ट करवाने होंगे। इन्हें आप अगले दिन मेरे पास ले कर आ जाइए”-डॉ. कहते हुए।”
अगले दिन सारे टेस्ट होने के बाद-(केवल सास के सामने)
“आपकी बहू की शादी हुये कितने साल हो गए…?”- डॉ. परेशानी की मुद्रा में।
“नौ साल…”-सास ने कहा।
“इसके साथ आपलोगों ने किस परिस्थितियों में शादी की थी…?”-डॉ. ने कहा
क्यों… डॉ.?”- सास ने असमंजस्य में पूछा।
“बात बहुत गम्भीर है शायद आप सुन नहीं पाएँगी…”-डॉ. गंभीरता व्यक्त करती हुई।
“प्लीज… डॉ. मैं… मैं सुनने की हिम्मत रखती हूं… क्या मैं कभी दादी नहीं बन पाऊँगी”- सास ने अपनी आशा व्यक्त करते हुए।
“सम्भवतः ऐसी स्थिति हमेशा बनी रही तो…”-डॉ. ने कहा।
“कैसी स्थिति…?”-सास ने
“क्या आपको कुछ भी नहीं मालूम… यही कि आपकी बहू… आजतक कुँवारी ही है”- डॉ. आश्चर्य करते हुए।
“क्या….”-सास का मुंह खुला का खुला ही रह गया।
“इतना ही नहीं…! शायद इसी गम ने अन्दर ही अन्दर इन्हें ब्रेन कैंसर का रोगी बना दिया है, जोकि अन्तिम अवस्था में है…अब इनके बचने की उमीद बहुत कम है। अब तो भगवान पर ही भरोसा करना होगा”- डॉ. ने बहुत संयम के साथ कहा।
“न…हीं, डॉ. ऐसा मत कहिये”-सास फूट- फूट कर रो पड़ी।
(सास को ऐसा लगा, अगर वो दो मिनट भी और खड़ी रह गई तो मूर्छित हो कर गिर पड़ेगी। भारी कदमों से सास किसी तरह घर आई।)
तुषार आगे आने वाले तूफान से बिल्कुल अनभिज्ञ स्थिति में जैसे ही घर में आया।कि-
“तुषार… तुम बाप बनने वाले हो”- माँ ने कुछ सोचकर नाटक करते हुए।
“क्या…!मैं, बाप बनने वाला हूं…”- तुषार के चेहरे पर परेशानी की लहर दौड़ पड़ी।
“क्यों? तुझे सुनकर खुशी नहीं हुई कि तु नौ साल के बाद बाप बनने वाले हो”- माँ खुश होने का अभिनय करते हुए।
“हाँ… हाँ… क्यों नहीं”-तुषार कहता हुआ जल्दी से कमरे की तरफ जाते हुए।
शिल्पा कमरा साफ कर रही थी कि तुषार के तीव्र स्वर उसके कानों में पड़े-
“शि…ल्पा…”
“जी”-शिल्पा काँपते हुए ,क्योंकि आज इतने सालों में पहली बार तुषार इतनी जोर से उस पर गुस्सा हुआ था।
“क्या ये सच है कि तुम माँ बनने वाली हो”- तुषार लगभग चीखते हुए।
“क्या…मैं !”
“हाँ… तुम…इतना नीचे गिर जाओगी… मैं सोच भी नहीं सकता था।”- तुषार अपने ही धुन में कहा जा रहा था।
“आप क्या बोल रहे हैं…मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा…”- शिल्पा बोलते हुए काँपने लगी।
“बहू… तुझे समझने की कोई जरूरत नहीं है… समझना तो इसे चाहिए था”-सास कमरे में प्रवेश करते हुए।
“माँ…”-तुषार घबराते हुए।
“मुझे सब कुछ पता चल चुका है। आज अगर डॉ. मिसेस अशोक से बात ना होती तो मुझे ये राज कभी पता न चलता और… औ…र”- माँ सिसक पड़ी
“माँ…”- तुषार विचलित हो उठा।तभी-
ध…ड़ा…म
“शिल्पा… शि…ल्पा”- एक साथ दोनों चीख उठे।
“बेटा जल्दी कर… इसे ब्रेन कैंसर है… अस्पताल ले चल”- माँ ने रोते हुए।
“क्या…?”
अस्पताल पहुँचने पर शिल्पा को तुरन्त ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया, परन्तु कुछ समय बाद ही-
“सॉरी… बहुत कोशिशों के बावजूद भी हम इन्हें बचा न सके। दरअसल ऑपरेशन टेबल पर लिटाने से पहले ही इनके दिमाग की नसे फट चुकी थी।”- डॉ. निराशा जताते हुए।
“न…हीं…शिल्पा मुझे माफ कर दो, तुम्हारा दोषी मैं हूँ…मुझे सजा दो…जो भी सजा दोगी मुझे स्वीकार है परन्तु माँ को सजा मत दो…मत दो…”-तुषार कहते हुए बच्चों की भांति फूट- फूट कर रो पड़ा।
“तुषार! अब किससे माफी मांग रहा है…उसकी लाश से…! तुमने सजा उसे सारी ज़िन्दगी दी और माफी क्षणभर में चाहता है…नहीं… नहीं अब तुम सारी ज़िन्दगी भी पश्चाताप के आँसू बहाओगे, तो भी तुम क्षमा के योग्य नहीं हो।वह मेरे घर की बहु थी…लक्ष्मी थी…मेरी बेटी थी परन्तु कभी उसने अपने दिल का दर्द किसी को नहीं सुनाया। मेरे घर में वह बनकर आई थी बहु लेकिन गई बनकर भी तो क्या…? ‘कुँवारी बहु’…’कुँवारी बहु’…’कुँवारी बहु’…।