Vo Teen Din | वो तीन दिन

कहानी शुरू करने से पहले मै आपको बताना चाहूंगी कि मैने एक EBOOK बनाई है जिसमे मेरी तीन आत्मलिखित पसंदीदा कहानियाँ हैं और वो मै आप सब को बिलकुल FREE में दूंगी। आपको बस अपना EMAIL ID नीचे भर कर मुझे भेजना है ताकि मै तुरंत आपको EBOOK भेज सकू।



कहानी सुनें:

https://youtu.be/7XQfVLkD21s

अगर आप कहानी सुनना पसंद नही करते या  फिर अभी सुनना नही चाहते तो आगे कहानी पढ़े|

 

कहानी पढ़ें:

कानपुर देहात स्टेशन पर गाड़ी रुकी ही थी कि प्रशान्त अपना बैग लेकर नीचे उतर गया। जाना तो था उसे कानपुर शहर में, किन्तु गाड़ी किसी कारण वश देहात में ही रुक गई। पता नहीं कब चलती यही सोच प्रशान्त के उतरने का मकसद था। उसे जल्दी से जल्दी अपने हॉस्टल जो पहुंचना था।

प्रशान्त एम.बी.बी.एस के फाइनल में होने के कारण इस साल की पढ़ाई अगले दिन से ही शुरू होने वाली थी। अतः उसे हॉस्टल में अपने लिए जगह लेनी थी ताकि वो अपने पढ़ाई पर विशेष ध्यान दे सके। प्रशान्त अपनी मां का इकलौता बेटा था। उसके लिए भी माँ के सिवा उसके जीवन में कोई भी नहीं था। इस पढ़ाई के लिए उसकी मां ने क्या-क्या पापड़ न बेले- बैंकों से लोन लेने के लिए कई महीनों तक बैंकों के चक्कर काटने पड़ें। साथ ही जहाँ वो नौकरी करती थी वहाँ से भी उसने अपने बेटे की पढ़ाई के लिए लोन उठाए।

दरअसल एम.बी.बी.एस की पढ़ाई आसान न थी। इसमें लगन के साथ-साथ ढेर सारे पैसों की भी जरूरत थी इसी वजह से प्रशान्त अपनी पढ़ाई व अपने कैरियर को लेकर गंभीर था ताकि वो एक अच्छा व जिम्मेदार डॉक्टर बन सके। और माँ को वो सारी खुशियाँ देना चाहता था जिसकी वो हकदार थी।

यही सब सोचते-सोचते कब स्टेशन को पीछे छोड़ते हुए सड़क पर आ गया, उसे पता ही नहीं चला। तभी, एक बेहद खूबसूरत लड़की उसके सामने आ कर बोली- “क्या आप मुझे लिफ्ट दे सकते है…”

प्रशान्त अपने आगे पीछे… दायें बायें घूम कर देखा कहीं किसी और को तो नहीं बोल रही….मैं तो पैदल हूँ फिर इतनी रात….

“क्या आपने मुझे कहा…?”- प्रशान्त ने आश्चर्य से

“हाँ… मैं आप से ही कह रही हूँ…”- उस अजनबी लड़की ने कहा



“किन्तु… मैं तो पैदल हूँ …आपको कैसे लिफ्ट दे सकता हूँ”- प्रशान्त अपनी असमर्थता जताते हुए।

“क्यों नहीं… साथ चलने की इजाजत तो दे सकते हैं…”- नयना ने कहा।

“ओह….. क्यों नहीं…”- दोनों हँसते हुए आगे बढ़ने लगे।

“मेरा नाम नयना हैं मैं यही पास में रहती हूँ प्रशान्त जी…”- अजनबी लड़की एक घर की तरफ इशारा करते हुए।

“आपको मेरा नाम कैसे पता…”- प्रशान्त विस्मय से।

वो हसंते हुए- “मुझे तो ये भी मालूम है कि आप केवल तीन दिनों के मेहमान हो…”- नयना कहते हुए बताए घर की तरफ चल पड़ी।

प्रशान्त के मुँह से कुछ न निकला बस हैरानी से उसे दूर जाते देखता रहा। उसकी हैरानी तब और बढ़ गई… जब आगे जाने पर अचानक अपना पाँव आगे बढ़ाते- बढ़ाते पीछे खींचा…. देखता क्या है कि मेन होल खुला था और उसके ऊपर का ढक्कन गायब। प्रशान्त घबरा गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि जिस रास्ते पर वो पहली बार आ रहा था वो इतना जाना पहचाना क्यूँ लग रहा है। इसी उधेड़ बुन में प्रशान्त हॉस्टल के गेट पर आ पहुंचा। वो गेट पर पहुँचते ही राहत की सांस लेते हुए अपने रूम में आ गया। एक कोने में बैग रख हाथ मुँह धोने बाथरूम में गया। प्रशान्त बाथरूम से बाहर निकाला तो सही किन्तु वो अपने आप में बहुत कमजोरी महसूस कर रहा था जैसे उसके शरीर की सारी ताकत किसी ने छीन ली हो। वो थका हारा होने के कारण अपने बिस्तर पर पड़ते ही सो गया।

अगली सुबह-

प्रशान्त देरी तक सोता रहा। सूरज काफी ऊपर चढ़ आया था। देरी होने के कारण उसका कॉलेज भी छूट गया।  प्रशान्त घबरा उठा कि आज कॉलेज छूट गया कि इतने में उसके रूम में चौकीदार अन्दर आते हुए- “प्रशान्त बाबु…. कल रात आप जल्दी सो गए और आज कॉलेज छूट गया….”

“तुम कौन हो भाई”- प्रशान्त ने कहा।

मैं यहाँ का चौकीदार साहब…”

“कल रात तुम्हारी ड्यूटी थी क्या…?”-प्रशान्त ने पूछा।

“नहीं… केवल मेरी सुबह की ड्यूटी है”- चौकीदार ने कहा।

“फिर तुम्हें कैसे पता चला कि मैं कल रात जल्दी सो गया”-प्रशान्त ने कहा।

“मुझे आप के बारे में सब कुछ मालूम है साहब…यहाँ तक कि आप केवल तीन दिनों के मेहमान हो…”-चौकीदार ने कहा।

“क्या…मतलब…?”- प्रशान्त चीख उठा।

लेकिन वो चौकीदार वहाँ से जा चुका था उसके पीछे प्रशान्त भागा, किन्तु उसे दूर-दूर तक वो चौकीदार न दिखा। दूसरे चौकीदार के पास जाकर प्रशान्त पूछा-

“इस समय किस चौकीदार की ड्यूटी है”।

“सर… मेरी…”- दूसरे चौकीदार ने कहा।

“फिर वो कौन था…?”-प्रशान्त ने अपने आप में बड़बड़ाते हुए।

“कौन सर… क्या हुआ..?”- दूसरे चौकीदार ने कहा।

“कुछ.. नहीं..”- प्रशान्त झल्लाते हुए।

उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर मेरे साथ हो क्या रहा है? प्रशान्त का सर दर्द से फटा जा रहा था इसलिए चाय मंगवाया। पीते- पीते अकस्मात अपना पाँव झटके से हटाते ही चाय गिर गई। वो सोचने लगा कि मुझे कैसे पता चला कि चाय इसी पाँव पर गिरने वाली है। प्रशान्त को अन्दर से ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे मानो ये सारे वाक्या जो एक- दो दिन से घट रहा था उसके साथ… ठीक वैसे ही कुछ दिनों पहले भी हुआ हो…परन्तु उसके समझ से परे था। क्योंकि उसको कुछ भी याद नहीं आ रहा था कि कब… कहाँ और उसके साथ कैसे… क्या हुआ था।

अब प्रशान्त की स्थिति एक मानसिक रोगियों जैसी हो गई थी। उसकी भूख- प्यास सब बन्द हो गई। घबराहट इतनी कि उसे सभी लोग अजीब व मायावी दिखने लगे फिर रहा न गया तो प्रशान्त नयना के घर जाता है जो उसे घर से आते वक्त रात को मिली थी। प्रशान्त को अन्दर से विश्वास था कि नयना से मिलते ही शायद सारी गुथी सुलझ जाए।

इसी विश्वास के साथ नयना के घर पहुँचते ही- “नयना से मिलना था… मैं… उसका दोस्त प्रशान्त”- प्रशान्त नयना के पिता से।

“जाओ बेटा जाओ… अब नयना किसी से नहीं मिल सकती…”- नयना के पिता आँखों में आँसू लिए।

“क्या… मतलब… अंकल… कहीं चली गईं क्या….?”- प्रशान्त धड़कते दिल से पूछते हुए।

“हाँ… बेटा… वो बहुत दूर चली गई… तुम्हें नहीं मालूम… नयना को गुज़रे पूरे एक साल हो गए”- नयना के पिता रोते हुए।

प्रशान्त सकते में आ गया। उल्टे पाँव नयना के घर से निकल कर अपने हॉस्टल की तरफ भागा।

तभी एक ऑटोरिक्शा वाला आते हुए बोला- “क्या बाबू…आपको कहीं छोड़ दूँ…?”

“चलो भाई …जल्दी चलो…’मेडिकल कॉलेज बॉयज हॉस्टल छोड़ दो..”- प्रशान्त परेशान होते हुए।

“बाबु…. आप इतना घबराये हुए क्यूँ नजर आ रहे हो…”- रास्ते में ड्राइवर ने कहा।

प्रशान्त चुप रहा… फिर ड्राइवर ने कहना शुरू किया-

“बाबु… आप अपनी दुनिया में क्यों नहीं वापस लौट जाते… क्यूँ परेशान हो इस दुनिया में…”

“तुम लोग मुझे पागल बना दोगे… क्या मतलब है तुम्हारा… दुनिया से…”-प्रशान्त लगभग चीखते हुए।

“बाबु,… हकीकत में… आपकी मौत ट्रेन हादसे में पाँच दिनों पहले हो गई थी। मृत्यु के पश्चात आपकी आत्मा हमारी दुनिया में आने ही वाली थी कि अन्य की आत्मा जो काफी शक्तिशाली थी। वो आपकी आत्मा सहित शरीर को अपने वश में कर ली… जो कि आपके दिमाग को तीन दिन पीछे की तरफ ले गई। फिर क्या था हमारी आत्माएं उसे विवश कर के केवल तीन दिन का समय दे दी…इसलिए अन्तिम तीन दिनों में आपके साथ जो- जो घटित हुआ, वही आपके साथ फिर इन तीन दिनों में हो रहा है”- ड्राइवर ने कहा।

“मैं कैसे मान जाऊँ कि तुम मुझे जो बता रहे हो… वो सच है..”- प्रशान्त ने शंका जताते हुए।

“प्रशान्त बाबु… इसलिए कि इन तीन दिनों में आपको कोई भी नहीं देख सकता… आजमाना चाहते हो तो अजमा कर देख लो”- ड्राइवर ने प्रशान्त को समझाते हुए।

“किन्तु मैं अभी-अभी नयना के पिता से भी बात कर के आया हूँ वो…”- प्रशान्त जिज्ञासा से।

“आपको जान कर हैरानी होगी कि जिनसे कुछ समय पहले आप मिलकर आये थे वो भी हमारी दुनिया के सदस्य हैं क्योंकि उनकी पाँच दिनों पहले ही मौत हुई थी”- ड्राइवर ने कहा।

प्रशान्त विस्मय से… अपने चारों तरफ देखते हुए-

“क्या… दूसरा चौकीदार भी…?”

“हाँ… बाबु…जितने भी लोग आप से इन दिनों में मिले थे वो सभी हमारी दुनिया के सदस्य हैं…हम लोगों की दुनिया का भी एक नियम है… अतीत में अटकी हुई आत्मा भूत बन जाती है। हालांकि यह इतना आसान नहीं होता क्योंकि शक्तिशाली और बुरी आत्माएं हमें किसी भी प्रकार के अच्छे कर्म नहीं करने देती। वे इतनी ताकतवर होती हैं, कि उनके सामने हमारा कोई बस नहीं चलता। अगर सही समय रहते इनके चंगुल से नहीं निकले तो आप बुरी आत्मा के चंगुल में फंस जाएंगे इसलिए हमारी दुनिया के लोग आपको बार-बार याद दिलाना चाहते थे कि तुम मेरी दुनिया के सदस्य हो। अब तुम्हारा यहाँ कोई काम नहीं..”- ड्राइवर प्रशान्त के अन्दर के भावों को शान्त करते हुए।

“अब मुझे क्या करना होगा…आपकी दुनिया में आने के लिए…”- प्रशान्त ने कहा।

“कुछ नहीं… आपका कल आखरी दिन है। सुनिश्चित समय पर आप ट्रेन में सफर करेंगे… किन्तु बुरी शक्तियां आपको अपने वश में ही रखने के लिए आपको ट्रेन से बचने के लिए उकसायेंगी परन्तु आप किसी भी हाल में ट्रेन से मत उतरना क्योंकि ट्रेन से बच गए तो आप हमेशा के लिए बुरी शक्तियों के कैदी बन कर रह जाओगे और वो तीन दिन का समय बीत गया तो फिर कई सौ साल तक उनके कैदी बने रहेंगे”- ड्राइवर ने कहा।

अगले दिन ठीक हुआ भी वैसे ही जैसे बुरी शक्तियां प्रशान्त को ट्रेन में चढ़ने ही नहीं दे रही थी। हवाएं तेज- तेज चलने लगी कुछ समय के अन्तराल में ही तेज हवाएं आँधी तूफान का रूप ले चुकी थी। उसी के साथ बेमौसम बारिश शुरू हो गई जैसे बुरी शक्तियां किसी भी हाल में प्रशान्त को छोड़ना नहीं चाहती हो परन्तु आज प्रकृति भी जैसे पूरे कहर बरसाने को उतारू थी… बारिश ऐसे मानों कुछ घण्टों में ही पूरे शहर को बहा ले जाएगी। जगह- जगह सड़कें फट गई…इधर- उधर पेड़ गिर पड़े… आसमान ने भी अपना ऐसा रक्त रूप रंग दिखाया जैसे कोई बहुत बड़ी अनहोनी होने जा रही हो। क्या ये प्रकृति का खेल था? नहीं …ये तो बुरी शक्तियों के द्वारा रचा चक्रव्यूह था।

प्रकृति के इस खेल को प्रशान्त अच्छी तरह समझ रहा था। इसलिए किसी भी तरह प्रशान्त अपनी पूरी ताकत व आत्मविश्वास के साथ ट्रेन में चढ़ गया। ज्यों ही ट्रेन हादसे की शिकार हुई त्यों ही चारों तरफ सन्नाटा छा गया हो… प्रशान्त मुक्त हो चुका था। अच्छी आत्माओं की दुनिया में प्रवेश करते हुए वो देखता है कि सभी लोग खड़े थे जो उसको इन तीन दिनों में मिले थे।

यह कहानी आपको कैसी लगी? अपने विचार कमेंट बॉक्स में share करे | अगर कहानी अच्छी लगी हो तो ‘Add to Favourites’ बटन को दबा कर दुसरो को भी यह कहानी पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करे और अपने ‘Your Added Favourites’ (Menu में है आप्शन) में जा कर अपने Favourites मैनेज करे |
मेरे बारे में जानने के लिए About Page पढ़ें और मेरे YouTube Channel को subscribe करना न भूले| और हाँ, क्या आपको पता है कि मै आप सब के लिए एक EBOOK बना रही हूँ जो कि मै आप सब को FREE में दूंगी? पाने के लिए यहाँ Click करें…

FavoriteLoadingAdd to favorites

आपको यह कहानियाँ भी पसंद आ सकती हैं: 👇🏾

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *