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माँ…….माँ…… -एक अन्जानी सी , मीठी सी आवाज आई।
सौम्या ने झट से अपने पेट पर हाथ रखा तो पाया, कि वो आवाज कही और से नहीं उसी की कोख से आ रही थी।
सौम्या ध्यान से सुनने की कोशिश करने लगी –
“माँ….माँ…. मैं आपकी नन्ही परी…मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूँ माँ….मैं आपको देखना चाहती हूँ… पापा के साथ खेलना चाहती हूँ और तो और सारी दुनिया में घूमना चाहती हूँ। फिर बताओ.. मुझे कब लाओगी इस दुनिया में ।”
“मैं क्या कहूँ मेरी गुड़िया…तुम्हारे पापा नहीं चाहते कि तुम इस दुनिया में आओ।”- सौम्या ने कहा।
” क्या कहा,नहीं….? पापा नहीं चाहते। नहीं माँ नहीं ऐसा मत कहो….मेरा गुनाह क्या है माँ, जो इस दुनिया में नहीं लाना चाहती? क्या मेरा गुनाह ये है कि मैं एक लड़की हूँ…. बेटी हूँ….?”
“सौम्या….सौम्या..….”- बाहर से आवाज आई।
“माँ…देखो बाहर आपको पापा बुला रहे हैं”- कोख की नन्ही परी ने कहा।
“आपने मुझे बुलाया “- सौम्या ने अपने पति (ऋषि) से कहा।
“अस्पताल चलना नहीं है क्या? चलो डॉक्टर से पूछ भी लेंगे कि सफाई करने के बाद कोई दिक्कत तो नहीं आयेगी”- ऋषि ने कहा।
“कल चलते है…आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है…”- सौम्या ने बहाना बनाते हुए।
“ठीक है…कल चलते है”- ऋषि ने कहा ।
“क्या हुआ माँ …? आपकी तबीयत मेरी वजह से खराब है न”?- नन्ही परी·
“नहीं बेटा….”- सौम्या ने कहा।
“मेरे आने से क्यूँ डरती हो माँ? क्या..मेरी जगह किसी और का इन्तजार था? मुझे मत मारो माँ … मैं बहुत सारे सपने लेकर आ रही हूँ, इसको मत कुचलो माँ..
. देखना घर-आँगन को मैं खुशियों से भर दूँगी। अगर तुम कुछ मना करोगी तो हरगिज न करुँगी। परन्तु मुझको मत मारो माँ…”- नन्ही परी
“नहीं, बेटा… मैं तुझे मारना नहीं चाहती इसलिए रोज आज-कल करती रहती हूं, ताकि मुझे तेरे पापा : अस्पताल न ले जाए”- सौम्या सारी वेदनाओं को समेटते हुए।
“सच्ची में माँ.. तुम नहीं चाहती मुझे मारना। याहू.हू..हू,….”
“अरे…अरे…कितना उछल रही हो…
दर्द हो रहा है…धीरे से मेरी नन्ही परी”- सौम्या ने पेट पर हाथ रखते हुए।
“माँ…पापा को भी समझाओ न… कहना उनसे तुम्हारी परी… कभी भी अपनी ख्वाइशें तुम्हारे कंधे पर नहीं डालेगी। वो अपनी किस्मत का फैसला खुद किस्मत से बनायेगी। क्या माँ…आप सो गईं…. ऊप्स.s s s.. माँ सो गई..मुझे बहुत कुछ कहना था। पर कोई बात नहीं, चलो मै भी सो जाती हूँ”।
ओह… मैं तो बहुत देर तक सोई। अगर माँ ने खाने के लिए न उठाया होता तो मैं सोती ही रह जाती। वॉव.. s s s.. माँ ने दूध भी पीया… कितना ख्याल रखती है मेरा..किन्तु फिर मुझसे दूर क्यूँ जाना चाहती हैं”- नन्ही परी।
सौम्या……….”- ऋषि आवाज लगाता है।
“आ गये ऑफिस से आप”- सौम्या ने कहा।
“क्या बताऊँ? आज ऑफिस में क्या हुआ? हमारे अकाउंटेंट दिनेश जी है न , उनके साथ बहुत बुरा हुआ”- ऋषि ने दुःख व्यक्त करते हुए।
‘क्यों, क्या हुआ?”- सौम्या ने पूछते हुए।
“बेचारे, दिनेश जी…दो महीने पहले ही अपनी बेटी की शादी की थी, पर ससुराल वालों ने जला कर मार डाला। मालूम है… जब दिनेश जी शादी का कार्ड बाँट रहे थे तो मेरी मुलाकात उनसे उन्हीं के घर के सामने हो गई, तब उन्होंने मुझे अपनी बेटी से मिलवाया था। बड़ी प्यारी बच्ची थी। उसी से बात करते हुए पता चला कि डबल एम. ए हिन्दी व संस्कृत से है। बात करने से बहुत होशियार लग रही थी। दिनेश जी बड़े खुश हो कर बता रहे थे कि अब उसे भोपाल में जल्द ही नौकरी भी मिल जाएगी। इसलिए उसकी शादी भी भोपाल में ही हो रही थी और आज जब मैं ने सुना कि उसके ससुराल वाले केवल दहेज के चलते जला दिए तो मुझे उस वक्त इतना गुस्सा आया उन लोगों पर कि मन किया उन्हें भी उसी तरह तड़पा- तड़पा कर जला दूँ जिस प्रकार उन्होंने उनकी बेटी को जलाया होगा। आज मेरा मन बहुत दुखी है। बेचारे दिनेश जी ….”- ऋषि अफसोस जताते हुए।
“सच में, बहुत ही बुरा हुआ उनके साथ”- सौम्या आगे कहती है
“मैं तो कहती हूँ ऐसे लोगों को कानून ऐसी सजा दे, जिसे दूसरे लोग देख कर सीख ले, जिससे वो ख्वाब में भी इस तरह का काम न करें”- सौम्या उन अजनबियों के प्रति आक्रोश जताते हुए।
“माँ..इतना गुस्सा…आप के लिए ठीक नहीं”- नन्ही परी
“सौम्या… केवल हम इस घटना को सुन कर कितना गुस्सा कर रहे हैं तो सोचो उन बेटियों के बारे में जिनके साथ कभी न कभी, कही न कही कुछ होता है। कहीं अस्मत लूटी जाती है तो कहीं तेजाब मुँह पर फैंका जाता है तो कहीं अपहरण, तो कहीं छेड़-छाड़, छीटाकशी। ऐसी स्थिति में उनकें माता -पिता के ऊपर क्या बीतती होगी। अब तुम्हीं बताओ मेरी कैसे हिम्मत होगी, कि मैं भी एक बेटी का बाप बनूँ”- ऋषि सौम्या को इस दुनिया का आईना दिखाते हुए।
सौम्या निरुत्तर थी। उसे ऋषि की एक- एक बातों में सच्चाई दिख रही थी, किन्तु इस दुनिया के चलते अपनी कोख को उजाड़ना… ये कतई मंजूर नहीं था।
“आप पहले चाय- नाश्ता कर लीजिए फिर बाज़ार से कुछ फल व मेरी दवाइयां ले आइये “- सौम्या बात बदलते हुए।
सौम्या सोफे पर पीछे की तरफ टेक लगाते हुए , आँखें बंद कर लेती है। उसका मन घबरा रहा था शायद दिनेश जी की बेटी के साथ जो हुआ था या अपनी नन्ही परी के साथ जो होने जा रहा था। ये निर्णय करना मुश्किल था।
इतने में-
“माँ…फिर आप चिन्ता करने लगीं… मैं ने मना किया था न कि ज्यादा चिन्ता मत किया कीजिए, आपकी तबीयत के साथ – साथ मेरी भी तबीयत खराब हो जाती है”- नन्ही परी
“सौम्या… लो… पहले दवा लो…मैं इसलिए तुम्हें इस समय इस तरह की घटना नहीं बताना चाहता लेकिन बातों- बातों में याद ही नहीं रहा”- ऋषि अफसोस जाहिर करते हुए।
सौम्या की तबीयत खराब होते देख ऋषि खुद ही रसोईघर से खाना लाकर सौम्या को बड़े प्रेम से खाना खिलाता है ये कहते हुए कि –
“अब तुम आराम करो… कल ही सुबह का अपॉइंटमेंट डॉक्टर से मिलने का ले लेता हूँ।”
सुबह होने पर-
सौम्या बड़े अनमने ढंग से तैयार हो रही थी। उसका मन रोने को कर रहा था। वो नहीं चाहती थी कि उसके हाथों से अपनी नन्ही परी की जान जाए। परन्तु …कैसे बोले ऋषि को , कि-
“मैं अजन्मी कोख की बेटी को जन्म देना चाहती हूँ। नन्ही परी को दुनिया दिखाना चाहती हूँ…उससे ज़िन्दगी भर ममत्व का रिश्ता रखना चाहती हूँ… जो उसकी नन्ही परी चाहती है वो सारी खुशियाँ, उसके कदमों में बिछाना चाहती हूँ पर….”- सौम्या बड़बड़ाते हुए।
“पर….क्या सौम्या? तुम कुछ पर…करके बोल रही थी”- ऋषि ने कहा ।
“कुछ नहीं… कब चलना है?”- सौम्या बहुत कुछ बोलना चाहती थी किन्तु बोल नहीं पा रही थी।
“सौम्या… अब हमें डॉक्टर की जरूरत नहीं। इस घर के सूने आँगन में एक नन्ही कली की जरूरत है…मुझे माफ कर दो सौम्या… मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ”- ऋषि आँखों में आँसू लिए हाथ जोड़ते हुए।
ऋषि, सौम्या को बाँहों में भरते हुए –
“मालूम है इतना बड़ा परिवर्तन कैसे हुआ…हमारी नन्ही परी के कारण.. मैंने तुमसे कल कहा था न, कि तुम सो जाओ, मैं बाद में सोऊँगा। जब मैं सोने आया तो देखा तुम्हारे आँखों में आँसू था। मुझे ऐसा महसूस हुआ कि तुमको कुछ तकलीफ है तब मैं तुम्हारे पेट पर धीरे से अपना सर रख दिया।” सहसा अन्दर से आवाज आई –
“पापा… पापा…मैं… आपकी नन्ही परी पापा.. मैं आपसे बहु…त बात करना चाहती हूँ। सुनेंगे न मेरी बात…मैं सच कहती हूँ पापा…मैं कभी आप की गर्दन झुकने न दूँगी… हमेशा आपकी शान बनूँगी। अगर आप मुझे दुनिया से लड़ने लायक बनाएंगे तो मैं दुश्मनों के लिए झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई बन जाऊँगी… क्यूँ इस जमाने से डरते हैं? मत उदास हो पापा… देखिएगा ..एक दिन बड़े हो कर बेटों से भी बढ़ कर मझदार का किनारा बनूँगी। अब तो पापा मान जाओ ना.. मुझे मत मारो पापा… मैं आपका अस्तित्व हूँ… शान हूँ…गौरव हूँ… गुरूर हूँ आपका पापा…”- अन्दर से सिसकियों की आवाजें आने लगी।
“सौम्या… बस उसी समय मैंने निश्चय कर लिया था कि मेरी बेटी का जन्म बड़े धूमधाम से होगा। बेटी नहीं तो दुर्गा-काली-लक्ष्मी को कौन पूजेगा। बेटी है तो बहू है। बेटी नहीं तो बहू कैसे? मेरी बेटी मेरा गुरूर है…मेरी आन- बान- शान है।”
सौम्या टप- टप आँसू बहाये जा रही थी, किन्तु ये खुशी के आँसू थे। आज सौम्या की नज़र में ऋषि का कद और भी ऊँचा हो गया था।
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Thanks Shraddha 🙂